
हिंदी नवाचार एवं कौशल की भाषा है ….. प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी (कुलपति)
हिंदी नवाचार एवं कौशल की भाषा है ….. प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी (कुलपति)
अनूपपुर पुष्पराजगढ़ (रमेश तिवारी)
इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के राजभाषा प्रकोष्ठ एवं हिंदी विभाग द्वारा दिनांक 14 सितंबर, 2023 को हिंदी दिवस के अवसर पर आभासी माध्यम से कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसकी विषय वस्तु “वसुधैव कुटुम्बकम् और हिंदी” थी।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता इं.गाँ.रा.ज.वि.वि. के कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी द्वारा की गई। विशिष्ट अतिथि के रूप में त्रिपुरा विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो. विनोद कुमार मिश्र आभासी माध्यम से उपस्थित रहे।
सर्वप्रथम कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना के साथ किया गया। इसके पश्चात इं.गाँ.रा.ज.वि.वि. के कुलगीत के साथ कार्यक्रम में स्वागत भाषण एवं बीज वक्तव्य विश्वविद्यालय के मानविकी एवं भाषाविज्ञान संकाय की अधिष्ठाता प्रो. रेनू सिंह द्वारा प्रदान किया गया जिन्होंने माननीय अध्यक्ष, विशिष्ट अतिथि, उपस्थित समस्त संकाय सदस्यों एवं श्रोताओं का इस कार्यक्रम में स्वागत किया। प्रो. रेनू सिंह ने अपने वक्तव्य में देवनागरी लिपि तथा हिंदी भाषा की सर्वमान्यता, वर्तमान में इंटरनेट पर हिंदी की प्रधानता तथा माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, फेसबुक जैसी विश्वस्तरीय कंपनियों, वेबसाइटों एवं सोशल मीडिया मंचों द्वारा हिंदी के प्रगतिशील उपयोग पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने अपने उद्बोधन में हिंदी को देव भाषा से विश्वभाषा के रूप में अपना स्थान ग्रहण करने, इसे सरलता, सहजता एवं सदाशयता की भाषा की श्रेणी में रखने तथा इसकी बोधगम्यता को सर्वश्रेष्ठ बताने संबंधी विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदी की पहुँच सर्वत्र है तथा मॉरिशस, फिजी एवं गुयाना जैसे वैश्विक स्थानों पर भी इसका प्रयोग बहुलता से किया जा रहा है। यह नवाचार एवं कौशल की भाषा है, हम सभी को स्थायी रूप से इसे सिखाने में सहायक बनना चाहिए तथा इस भाषा में निहित शब्दों, वाक्यों एवं लोकोक्तियों का निरंतर प्रयोग सुनिश्चित करना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. विनोद कुमार मिश्र ने कार्यक्रम की विषयवस्तु “वसुधैव कुटुम्बकम् और हिंदी” की सराहना करते हुए इसकी प्रासंगिकता तथा संपूर्ण विश्व द्वारा इसे समग्र रूप से अंगीकृत करने पर बल दिया। उन्होंने संवेदनशील अवसरों पर भारत द्वारा औषधियों के विश्वस्तरीय वितरण के दौरान “सर्वे सन्तु निरामया” के बहुस्तरीय प्रयोग की अतीव प्रशंसा की तथा देश के इतिहास, संस्कृति एवं उसमें निहित शास्त्रों को समाज की प्राणवायु के रूप में इंगित किया।
कार्यक्रम का समापन विश्वविद्यालय के राजभाषा प्रकोष्ठ की हिंदी अधिकारी डॉ. अर्चना श्रीवास्तव द्वारा दिए गए आभार प्रदर्शन के साथ किया गया। कार्यक्रम का संचालन इतिहास विभाग के सहायक आचार्य डॉ. देवेन्द्र सिंह द्वारा किया गया।