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जनजातीय समुदाय की स्वदेशी परंपराओं और डिजिटल भारत में इसकी प्रासंगिकता विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्

जनजातीय समुदाय की स्वदेशी परंपराओं और डिजिटल भारत में इसकी प्रासंगिकता विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्

अनूपपुर- पुष्पराजगढ़ (रमेश तिवारी)


इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग में 25 मई और 26 मई को जनजातीय समुदाय के बीच स्वदेशी ज्ञान की अनूठी प्रथाओं और डिजिटल भारत में इसकी प्रासंगिकता विषय पर दो दिन के राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के सौजन्य से आयोजित इस संगोष्ठी के उद्धाटन सत्र में भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित हुए।कार्यक्रम की अध्यक्षता विवि के कुलपति प्रो श्रीप्रकाशमणि त्रिपाठी ने की एवं विशिष्ट अतिथि दैनिक भास्कर डिजिटल स्टेट हेड सी.जी, रायपुर के डॉ विश्वेश ठाकरे थे। समापन सत्र में प्रो. राम मोहन पाठक मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि के रुप मे शहडोल के कमिश्नर श्री राजीव शर्मा , स्वदेश पत्रिका के संपादक श्री अतुल तारे, विवेकानन्द इन्स्‍टिट्‌यूट् के प्रो. रमेश शर्मा, इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के प्रो.दुर्गेश त्रिपाठी ,जानकी रमण महाविद्यालय के डॉ. आनंदसिंह राणा और पीईएसए एक्ट प्रारुप समिति के पूर्व सदस्य डॉ. रुपनारायण मांडवे उपस्थित रहे।

जनजातीय समुदाय की स्वदेशी परंपराओं और डिजिटल भारत में इसकी प्रासंगिकता विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्
उद्धाटन सत्र में लोक संस्कृतिकर्मी डॉ. पी. सी लाल यादव ने कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रुप में शिरकत की। । साथ ही राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, भारत सरकार के पूर्व महानिदेशक प्रो.एम मोनी और माइक्रोसॉफ़्ट के भारतीय भाषाएँ और सुगम्यता के निदेशक डॉ. बालेन्दु शर्मा दाधीच ने विशिष्ट अतिथि के रूप में सभा को संबोधित किया। इसके साथ ही विश्वविद्यालय में Y20 के आयोजनों की भी शुरुआत हुई। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ. पी. सी. लाल यादव ने अपने संबोधन में कहा “स्वदेशी ज्ञान परंपरा संस्कृति को क्षरण से बचाएगी”, साथ ही उन्होंने पंडवानी और रामायनी कथाओं का उदाहरण देते हुए बताया कि जनजातियों के अपनाए गये समाधान ही आगे उनकी परंपरा बनाती हैं।

भारतीय जनंसचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि प्रकृति के पास
रहने वाले जनजातीय समाज को अज्ञानी समझा जाता है जबकि जनजातीय समुदाय व्यापार एंव चिकित्सा के परमज्ञानी हैं। मुख्य अतिथि ने यह भी कहा कि हम जब भी न्याय की सूची देखेंगे तब जनजातीय समाज को सबसे उपर पाएँगे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री. विश्वेश ठाकरे जी ने अपने वक्तव्य में जनजातीय समाज के औषधियों के पारंपरिक ज्ञान के सराहना की। श्री. ठाकरे ने इस बात पर जोर दिया कि जनजातीय मूल ज्ञान और संस्कृति को उचित डिजिटल आयामों से जोड़ा जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी इससे लाभान्वित हो सके।
माइक्रोसॉफ़्ट के भारतीय भाषाएँ और सुगम्यता के निदेशक डॉ. बालेन्दु शर्मा दधीच ने भारत के भाषाओं के संकट और भाषाओं के
विकास पर चल रहे कार्यक्रमों से अवगत कराया। साथ ही राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, भारत सरकार के पूर्व महानिदेशक प्रो.एम मोनी ने जनजातीय समुदाय के आर्थिक विकास, डिजिटलीकरण पर बल दिया।

संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि प्रो. राम मोहन पाठक ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमें सरोकार वाला समाज चाहिए , उन्होंने जनजातीय भाषाओं की महत्ता पर बात की और उनके भाषाओं की लगातार लुप्त होती स्थिति पर चिन्ता व्यक्त की। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कमिश्नर श्री राजीव शर्मा ने माना कि डिजिटलीकरण के कारण भूमंडल एक
‘मंडी’बन गया है। उन्होंने कहा की हमारी परंपराओं के सच्चे सरंक्षक जनजातीय समुदाय है, उन्हें हर क्षेत्र में सशक्त बनाने की ज़रूरत है। प्रो. रमेश शर्मा ने कहा की भारत को विश्व गुरु बनाने का सपना तभी पूर्ण होगा जब हम आदिवासी समाज, उनकी संस्कृती, ज्ञान को समझेंगे। उन्होंने माना की अध्यात्म, धर्म, शिक्षा, कृषि, हस्तशिल्प कला ये सारे योगदान आदिवासी समाज के हैं ।अतुल तारे ,समूह संपादक स्वदेश ने फ्रांसीसी क्रांति का जिक्र करते हुए वहाँ के जेल कैदियों की कहानी साझा की। उन्होंने कहा कि भारत की मुख्यधारा जनजाती ही हैं। प्रो.दुर्गेश त्रिपाठी ने कहा की जबतक हम पृथ्वी के मूल तथ्यों को ना समझ ले, हम जनजातीय समाज को नहीं समझ पाएँगे।उन्होंने कहा की हमारा ज्ञान डिजिटल इंडिया पर आधारित है। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी ने किया उन्होनें अपने संबोधन मेवसुधैव कुटुंबकम् के ध्येय, भारत के ऋषि और कृषि परंपरा का उल्लेख किया और इस सफल आयोजन के लिए विभाग की सराहना की।

भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित इस संगोष्ठी में बारह राज्यो से प्राप्त, पांच तकनीकी सत्रों में 65 शोधपत्र प्रस्तुत किए गए जिसमें स्वदेशी परंपरा को विज्ञान के वाहन पर सवार कर देश दुनिया तक पहुँचने के विभिन्न तरीक़ों पर परिचर्चा हुई । इस संगोष्ठी की संयोजक पत्रकारिता और जनसंचार विभाग की संकायाध्यक्ष और विभागाध्यक्ष प्रो. मनीषा शर्मा हैं।

Saurabh Gupta

Saurabh Gupta is the Content Writer and Founder of karekaise.in, A blogging website that helps reader by providing News, Article on Educational topics in both language Hindi And English. He is from Anuppur district, Madhya Pradesh, India.

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